आज ट्रांसगिरी की 154 पंचायते, उत्तराखंड के जौनसार-बावर की तर्ज पर जनजातीय घोषित होने की दहलीज पर है। और ये संबंधित पंचायतो के लोगो के लिए हर्ष का विषय है। क्योंकि इस मांग को लेकर यहां के लोग लम्बे समय से संघर्ष कर रहे थे। ऐसे में यदि लंबी लडाई के बाद इनकी ये मांग पूरी होती है तो खुशी मनाना बनता है। और हमे भी दिल से इस बात की खुशी है।आखिर दूसरों की खुशी में खुश होना यही तो हमारी संस्कृति और संस्कार है।
लेकिन एक सवाल जो बार-बार जहन में आ रहा है वह ये कि आखिर कुपवी की 15 पंचायतो की दावेदारी कहाँ कम पड़ गई?
अनुसूचित जनजातियों की पहचान के लिये पाँच मानदंड तय किये गए है - आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क में संकोच और पिछड़ापन।
इन सभी पैमानों पर यदि ट्रांसगिरी के पच्छाद इत्यादि क्षेत्र खरे उतर सकते है तो कुपवी की 15 पंचायते क्यों नही? जबकि कुपवी की 15 पंचायतो की दावेदारी शिलाई और संगड़ाह विकास खण्ड की पंचायतो के बराबर है। सरलता से समझने के लिए नीचे दिए हर एक बिंदु को जरूर पढ़ें:-
1. रियासत काल मे कुपवी भी जौनसार-बावर की तरह सिरमौर रियासत के हिस्सा हुआ करता था।
2. कुपवी की आधे से ज्यादा पंचायते शिलाई व रेणुका विधानसभा के साथ अपनी सीमाएं सांझा करती है। जिसके चलते कुपवी की भेषभूषा, बोल-चाल,खान-पान, संस्कृति, रीति-रिवाज इत्यादि जौनसार-बावर, शिलाई, संगड़ाह के लोगो से पूरी तरह मेल खाते है।
3. कुपवी क्षेत्र जोकि पहले ही दुर्गम व पिछड़ा घोषित किया जा चुका है, उसे इस मांग में पच्छाद जैसे क्षेत्रों से पीछे रखना कितना न्यायसंगत है। कुपवी से जिला मुख्यालय/राजधानी शिमला पहुचने में ही कम से कम 8 से 10 घण्टे लग जाते है। इतना ही नही कुपवी के कई गांव ऐसे भी है जो अभी तक सड़को से भी नही जुड़े है। तहसील मुख्यालय पहुचने में भी यहां के कुछ एक गांव के लोगो को 4-5 घण्टे का सफर तय करना पड़ता है। भौगोलिक दृष्टि से कठिन व दुर्गम होने के चलते यहां के लोगो को जीवन यापन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
4. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कुपवी की 100 % आबादी ग्रामीण इलाके में वास करती है। और लगभग 91 % आबादी जीवन यापन के लिए कृषि पर निर्भर करती है। इसके अलावा प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता दर, स्वास्थ्य इत्यादि अन्य पैमानों में भी क्षेत्र की हालत बहुत अच्छी नही है। 2011 के अनुसार कुपवी की साक्षरता दर मात्र 69.31 % थी। जोकि हिमाचल की साक्षरता दर से लगभग 15% कम है। इसलिए आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन के पैमाने को भी कुपवी क्षेत्र बखूबी पूरा करता है।
5. इसके अलावा कुपवी की 15 पंचायते जोकि सरकार द्वारा पिछड़ी घोषित की गई है। उस से भी हमारी दावेदारी मजबूत होती है।
6. इन सब के अलावा आज भी यहां जन्म से मृत्यु तक के अनेको रीति रिवाज ऐसे है जो इस क्षेत्र को अन्य क्षेत्र से अलग करते है और जौनसार-बावर और शिलाई-संगड़ाह से जोड़ते है।
7. राज्य सरकार पहले ट्रांसगिरी के साथ-साथ कुपवी को भी जनजातीय घोषित करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजती थी। लेकिन एकाएक कुपवी को दरकिनार कर केवल ट्रांसगिरी को इसमे रखा गया, ऐसा क्यों?
हम ये नही कहते कि ट्रांसगिरी की जो पंचायते ये मांग उठा रही है वो नाजायज है। बल्कि हमारा ये मत है कि उनकी मांग बिल्कुल जायज है लेकिन हमारी मांग भी उनसे अलग नही है और किसी भी रूप में हमारी दावेदारी उनसे कम तो बिल्कुल भी नही है।
कल तक इस मांग में जहाँ कुपवी और ट्रांसगिरी का नाम एक साथ रखा जाता था। आज हालात ये है कि मजबूत दावेदारी होने के बावजूद भी कुपवी का कही जिक्र तक नही होता। इसके पीछे कई कारण हो सकते है।जैसे:-
1. क्षेत्र की राजनीति में कोई खास पकड़ न होना।
2. क्षेत्र से कोई बड़ा राजनैतिक चेहरा न होना।
3. क्षेत्रवासियों में एकजुटता का अभाव।
4. क्षेत्रवासियों में दृढ़शक्ति व दृढ़संकल्प का अभाव।
5. पढ़े लिखे वर्ग का आगे न आना।
6. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण लोगो का अधिकतर समय अपने परिवार को पालने में निकल जाता है। और जो समृद्ध व सम्पन्न वर्ग है वह ऐसे कार्य मे अधिक रुचि नही दिखाते।
7. जनप्रतिनिधियों में इच्छाशक़्क्ति की कमी। फिर चाहे पंचायत स्तर पर हो या उस से ऊपरी स्तर पर। निर्वाचन क्षेत्र के किसी भी बड़े नेता ने आज तक इस मुहिम में अधिक दिलचस्पी नही दिखाई है।
ऐसे तमाम कारण हो सकते है जिसके चलते आज हमारी आवाज कही खो गई है।
अब सवाल ये उठता है कि क्या अभी भी कुछ हो सकता है या बहुत देर हो चुकी है? हालांकि कुछ भी कहना उचित नही है लेकिन इतना जरूर है कि यदि हम लोग एकमत होकर मजबूती से अपनी मांग को रखते है तो कोई न कोई रास्ता जरूर निकल सकता है। और यदि हम पहले ही ये सोच के बैठ जाएंगे कि अब शायद बहुत देर हो गई है तो वैसे भी कुछ हासिल नही होने वाला। हमारा ये मानना है कि यदि हमारी मांग जायज है तो कोई न कोई रास्ता अवश्य निकलेगा बशर्ते हमे स्वार्थ से ऊपर उठकर और राजनैतिक विचारधारा को अलग रखके सोचने और करने की आवश्यकता है। तो आइए बेहतर कल के लिए मिलकर एक प्रयास करे।
"एकता निर्बलों को भी शक्ति प्रदान करती है"
हमारी निर्वाचन क्षेत्र चौपाल के तमाम राजनेताओ से ये अपील रहेगी की कृपा करके हमारी इस मांग को सरकार के समक्ष मजबूती से उठाए।
इस विषय पर आप सभी कमेंट के माध्यम से अपने सुझाव अवश्य दे। और यदि लेख में आपको कुछ भी अनुचित लगे तो जरूर बताएं।
इस मुहीम को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुँचाने के लिए इस पोस्ट को शेयर जरूर करे। #SHARE
।।जय हिन्द।।
#SHARPNGO #SHARPHP #SHARPKUPVI #SHARP #KUPVI #CHOPAL #SHIMLA #HIMACHALPRADESH
#ruraldevelopment #JusticeForAll #jaunsarbawar #हाटी #haati #ट्रांसगिरी #transgiri