पंचायत के कामो का पैसा अपनी मन मर्जी से इस्तेमाल करना आम बात हो गई थी । जिन कामो में अपना मुनाफा दिखता केवल उन्ही कामो को तवज्जो दी जाती थी। गरीब और जरूरतमन्द लोगो की बात और मांग को अक्सर नजरअंदाज किया जाता था।
पंचायत के लोगो में अंदर ही अंदर इनके लिए गुस्सा उबल रहा था। लेकिन कोई भी इसपर बात करके रसुखदारो का बुरा नहीं बनना चाहता था।
एक दिन पंचायत का एक गरीब व्यक्ति मकान की मरम्मत और पानी, बिजली इत्यादि की समस्याए लेकर आया। इस गरीब व्यक्ति के मकान के हाल ऐसे थे की मिटटी से बना 2 कमरो का मकान बारिश आते ही पानी से भर जाता था। घर में दरवाजे तक नहीं थे। बिजली पानी की तो खेर बात छोड़ दीजिये। और इन सब के बावजूद सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये थी की ये आदमी BPL सूचि से अब तक बाहर था।
पंचायत के नुमाइंदों ने उस समय तो उसकी मांगों को लेकर हामी भर दी। लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी उसकी मांगे पूरी नहीं हुई। न BPL सूचि में डाला गया, न किसी सरकारी योजना के तहत घर बनाने के लिए सहायता की गई और न ही बिजली पानी की सुविधा मिली।
उस व्यक्ति की ऐसी हालात देखकर कुछ लोगो ने ये निर्णय लिया कि अब उन्हें उस गरीब व्यक्ति की सहायता करनी होगी और पंचायत के कार्य में हो रही गड़बडिओ के खिलाफ भी आवाज उठानी होगी।
सबसे पहले तो उन लोगो ने उस गरीब व्यक्ति को बिजली पानी के कनेक्शन अपने खर्चे पर मुहैया करवाये। उसके पश्चात उस व्यक्ति के मकान की मरम्मत करने के लिए भी कुछ रूपए इकट्ठे किये।
लेकिन जेसे ही उन लोगो ने पंचायत की गड़बडिओ को उजागर करना शुरू किया। पंचायत के नुमाइंदे उन्हें बदनाम करने पर उतर आये। उन लोगो के बारे में गलत अफवाहे पंचायत में फैलाई गई। लेकिन ये लोग अपने इरादों पर अडिग रहे। और एक के बाद एक गड़बड़ी सामने लाते गए।
पंचायत के नुमाइंदों को जब कोई और रास्ता नजर नहीं आया तो उन्होंने इनकी तरफ समझोते का हाथ बढ़ाया और माफ़ी मांगने का ड्रामा किया और इसके साथ साथ कई तरह के प्रलोभन भी दिए गए।
अंत में जब पंचायत के नुमाइंदों को सफलता हाथ नहीं लगी तो एक मीटिंग इन लोगो के साथ रखी गई । जब किसी भी तरह बात बनती नहीं दिखी तो पंचायती नुमाइंदे बोखलाहट में कहने लगे की "तुम लोगो ने पंचायत का नाम बदनाम कर दिया है", " तुम्हे क्या नाते रिश्ते का कोई लिहाज नहीं" , "तुम लोगो को ऐसे उलटे काम करके क्या मिलेगा" , " ये फालतू काम क्यों करते हो", "तुम्हे तो अपना फायदा देखना चाहिए और फायदा उठा के चुप रहना चाहिए"। ये सब कह के सभी पंचायती नुमाइंदे वहाँ से चले गए । और उनके जाने के बाद इन लोगो में एक जोर जोर से हँसने लगा। उसे हँसता देख बाकि सभी लोग भी हसने लग गए।
शायद ये हंसी उस पंचायत में एक नए उदय की ख़ुशी और गूँज थी।
ये निर्णय तो आप स्वयं लीजिये की कौन सही था कौन गलत। लेकिन आज हर पंचायत में हालात लगभग कुछ ऐसे ही है और लोगो को भी बिल्कुल ऐसे ही एकजुट होकर गलत के खिलाफ बिना डरे और निस्वार्थ भाव से आवाज उठाने की जरुरत है। तभी ग्रामीण क्षेत्रो में हालात सुधर सकते है।
।।जय हिन्द।।
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