एक समय की बात है किसी गाँव में एक छोटा सा कार्य सरकार द्वारा मंजूर किया गया। गाँव वालो के लिए ये बहुत जरुरी कार्य था।इस कार्य की मंजूरी दिलवाने के लिए उन्होंने दफ्तरों के कई चक्कर काटे थे और इस से गाँव की रोजमर्रा की ज़िन्दगी जुडी थी।
मंजूरी के बाद ये काम किसी स्थानीय ठेकेदार को सौंपा गया जिस से गाँव वालो के पारिवारिक सम्बन्ध थे। लोग इस बात से काफी खुश थे की अपने किसी सगे-संबंधी को काम मिला है और उन्हें अब कोई चिंता नहीं थी अपितु पूरा यकीन था कि अपने सगे संबंधी के पास ये काम है तो नाते रिश्ते का लिहाज करके वह इस कार्य को जल्द ही करवा देगा और पूरी गुणवत्ता के साथ ये कार्य पूर्ण होगा।
लेकिन काम शुरू होने का इंतज़ार करते करते साल बीत गया।गाँव के लोग जब भी काम के बारे में पूछते तो ठेकेदार जी जल्द काम शुरू करने का दिलासा दे कर बात को रफा दफा कर देते।
1 वर्ष से भी अधिक समय बीत जाने के बाद और बार बार ठेकेदारो के आगे मिन्नते करने के बाद भी काम शुरू नहीं हुआ। गाँव के युवाओ से लेकर बुर्जुर्ग तक लगभग सभी ठेकेदार से मिन्नते कर चुके थे। और सम्बंधित विभाग के स्थानीय अधिकारी को भी कई बार सूचित कर चुके थे। लेकिन परिणाम हर बार वही झूठा दिलासा और नाते रिश्ते की दुहाई।
दिनों का इंतज़ार अब सालो में तब्दील हो चूका था। लगभग 2 साल का समय पूरा हो चूका था और गाँव वालो को अभी भी काम शुरू होने का इंतज़ार था। अब गाँव के कुछ नोजवानो का सब्र का बाँध टूट रहा था। उन्होंने निर्णय लिया की अब उच्च स्तर पर इस मामले को उठायेगे और जल्द इसमें कुछ कार्यवाही करने की मांग करेगे।लेकिन गाँव के युवा ऐसे काम अपने बुर्जुर्गों से पूछे बिना नहीं करते थे। इसलिए उन्होंने इस दिशा में आगे बढ़ने से पहले अपने बुजुर्गो को पूछना उचित समझा। जब उन्होंने गाँव के बुजुर्गो के समक्ष अपनी बात रखी तो युवाओ को ये कह के चुप करवा दिया गया कि ऐसे उलटे काम नहीं करने चाहिए "नाते रिश्ते का तो लिहाज करो"। और इस चुप्पी का परिणाम ये हुआ की गाँव वाले इंतज़ार करते रह गए और ठेकेदार जी रिश्तेदारी में मिली छूट का फायदा उठाकर बचते रहे।और ये काम कभी शुरू ही नहीं हुआ।
अब सवाल ये उठता है कि क्या नाते रिश्ते की डोर सिर्फ एक तरफ से पकड़ के चल सकती है?? चलेगी भी तो आखिर कब तक?? अपनों के लिए आये काम मतलब अपने काम फिर भी ऐसी हरकते?? अगर ठेकेदार जी को नाते रिश्ते का इतना ही लिहाज होता तो काम में देरी करने की वजाए और जल्दबाज़ी दिखाते और इस काम को प्राथमिकता देते। पर ऐसा नहीं हुआ। सच्चाई तो ये थी कि गाँव वाले रिश्तेदारी की उस डोर को पकड़ के बेठे थे जिसे ठेकेदार जी अपने मतलब के लिए इस्तेमाल कर रहे थे।
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।।जय हिन्द।।
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