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मंगलवार, 11 अगस्त 2020

।।सावधान।।सरकारी योजनाओ के नाम पर हो रही है ठगी।।FRAUD ALERT।।

साइबर ठग पहले बैंक के कर्मचारी बनकर लोगो से ठगी करते थे, या बिमा इत्यादि के नाम पर ठगी करते थे।लेकिन अब ये अपराधी सरकारी योजनाओ के नाम पर लोगो को ठग रहे है। 

इस तरह के कई मामले आजकल देश और प्रदेश में सामने आ रहे है। और ये लोग ग्रामीण क्षेत्र के भोले भाले लोगो को अपना निशाना बना रहे है। ऐसा ही एक मामला हालही में किन्नौर जिले में सामने आया जिसमे एक किसान को किसी अनजान नंबर से फ़ोन आया और उसे कहा गया कि हम प्रधानमंत्री आवास योजना के कार्यालय से बोल रहे है और आपको इस योजना में शामिल किया गया है। आपको अभी एक OTP आएगा उसे बताये। और जैसे ही किसान ने OTP बताया उसके खाते से 16500 रूपए तुरन्त कट गए। पीड़ित किसान ने तुरंत इसकी शिकायत साइबर विभाग में की और 9000 रूपए साइबर विभाग अभी तक उस किसान को वापिस दिलवाने में सफल रहा है। अभी इसमें  छानबीन जारी है।

इसके इलावा व्हाट्सएप्प या अन्य माध्यमो से सरकारी योजनाओ के नाम पर फ्रॉड लिंक भी ठगी के कई मामले सामने आते रहते है।

आप सभी कृप्या ऐसे ठगों से सावधान रहे। और बैंक खाते से सम्बंधित या ATM सम्बंधित जानकारी या OTP किसी से सांझा न करे। 

खुद भी जागरूक बनिए और औरो को भी जागरूक कीजिये।

यदि ऐसी ठगी का शिकार हो भी जाते है तो धैर्य रखते हुए तुरंत इसकी शिकायत दर्ज करवाये। वक्त रहते शिकायत दर्ज करवाने पर आपके पैसे वापिस आ सकते है। इसलिए सतर्क व् सजक रहे।

।।जय हिन्द।।

सोमवार, 10 अगस्त 2020

शार्प के सदस्यों ने XEN PWD चौपाल( Chopal) से की मुलाकात।


बीती रात SHARP के सदस्य ने HPPWD XEN CHOPAL से मुलाकात की।जोकि कुपवी के दौरे पर है। हमारी उनसे गुजारिश रहेगी की समय समय पर क्षेत्र के दौरे करते रहे।


XEN साहब से हुई इस मुलाकात के दौरान क्षेत्र से जुड़े  विभिन्न मुद्दों पर बात हुई और उनमे से कुछ मुद्दों पर उन्होंने क्या कहाँ वह कुछ इस प्रकार है:-


1. कुपवी स्कूल भवन के जो 5 कमरे बनने थे परंतु नहीं बने। जिसमे की केवल 2 ही कमरे बन पाये थे। और काफी समय से इस काम में कोई कार्यवाही नहीं हो रही थी। इसपर कहा कि बाकि बचे कमरो को बनाने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी।


2. कुछ समय पूर्व जो एक ठेकेदार L&T सड़क में चला कर ले गए थे जिस वजह से सड़क को काफी नुकसान हुआ था। इस पर भी उन्होंने JE PWD कुपवी को डैमेज रिपोर्ट तैयार करने को कह दिया है। उसके बाद जो भी उचित कार्यवाही बनेगी वो की जायेगी।


3. CHC भवन के निर्माण कार्य में तेजी लाइ जायेगी और गुणवता का पूरा ध्यान रख के कार्य किया जाएगा। और जिस ड़ंगे पर शार्प ने ऑब्जेक्शन किया गया था उसे गिराया जायेगा ,ऐसा आश्वासन SDO कुपवी ने दिया था। जिसमे की विभाग अब आनाकानी कर रहा था हालाँकि विभाग के अधिकारिओ के पूर्व में दिए बयान हमारे पास मौजूद है। इस पर आज XEN साहब से पुनः मौके पर मिलेगे।


4. कांडा-बनाह सड़क पर जो सड़क की गलत कटाई करके सड़क को असुरक्षित किया गया है। जिसपर काफी समय से हम आवाज उठा रहे है। पर कोई संतोषजनक कार्यवाही नहीं हुई। और इस स्पॉट पर गत 11 जुलाई को जब SDO PWD मौके पर आये थे तो उन्होंने भी उस समय गलत कटाई को कबूल किया था और कहाँ था की इसमें कम से कम 25-30 लाख का खर्चा पड जाएगा। ठेकेदार द्वारा की गई इतनी बड़ी गलती के बावजूद भी ठेकेदार पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती। आखिर क्यों??हालाँकि इसमें भी विभाग काफी समय से आनाकानी कर रहा था लेकिन अब वहाँ ड़ंगे देने का आश्वासन XEN साहब ने दिया है।


5. बौरा गाँव की वर्षा- शालिका का कार्य 1 हफ्ते के अंदर शुरू किया जाएगा।


6. इसके इलावा PWD रेस्ट हाउस, जोकि सरकारी संपत्ति है उसका दुरूपयोग बंद किया जाये। और जो यहाँ एक-डेढ़ वर्ष से नायब तहसीलदार साहब को ठहरा रखा है। उन्हें भी जल्द कमरा लेने को कहाँ जाये। और PWD रेस्ट हाउस का जो दूसरे तरह से भी दुरूपयोग किया जाता है उसे भी बन्द करने के बारे में बात की गई।


इसके इलावा एक बात स्पष्ट की गई है कि हम लोगो ने अब मिन्नते बहुत कर ली है। पिछले 3 साल से हम मिन्नते कर रहे है की क्षेत्र में विकास कार्य समय पर और गुणवत्ता के साथ किये जाये। लेकिन हमारी ये भाषा अभी समझ नहीं आ रही है। और बार बार हमारी बातो को  नजरअंदाज किया जा रहा है। अगर ऐसा ही रवैया रहा तो फिर हमे भी रास्ते और तरीके बदलने पड़ेंगे जोकि फिर काफी तकलीफदायीं हो सकते है।


हालाँकि ये केवल मौखिक आश्वासन है।हमारी कोशिश रहेगी कि ये सब जल्द लिखित में विभाग से लिया जाये।


इसके इलावा आज हम XEN साहब के साथ कुछ स्पॉट का दौरा भी करेगे।


#KUPVI     #कुपवी


।।जागो।। संगठित हो जाओ।।


।।जय हिन्द।।

मंगलवार, 4 अगस्त 2020

।।डॉ. यशवंत सिंह परमार।। सरल , सादगी और परिश्रम की ऐसी मूरत जो CM पद से इस्तीफ़ा देने के बाद HRTC की बस में बैठ कर अपने गाँव चल दिए थे।

डॉ. यशवंत सिंह परमार का जन्म चार अगस्त, 1906 को सिरमौर रियासत के ग्राम चन्हालग में हुआ था। उन्होंने एम.ए, एल.एल.बी. तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त कर सिरमौर रियासत में जिला एवं सत्र न्यायाधीश तथा फिर दिल्ली में अनेक महत्वपूर्ण शासकीय पदों पर काम किया। 1946 मे वह संविधान सभा के सदस्य नियुक्त किये गए। 1947 में देश स्वतन्त्र होने के बाद 15 अप्रैल, 1948 को हिमाचल प्रदेश का एक केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में गठन हुआ। उस समय हिमाचल को एक दूरदर्शी तथा राजनीतिक सूझबूझ वाले नेता व कुशल प्रशासक की आवश्यकता थी। स्वतन्त्रता सेनानी वैद्य सूरत सिंह ने डा. यशवन्त सिंह परमार की योग्यता को पहचान कर पच्छाद क्षेत्र से उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ाया। हालाँकि जनता की इच्छा थी कि वैद्य जी स्वयं चुनाव लड़ें। चुनाव जीतने के बाद डॉ. परमार हिमाचल के प्रथम मुख्यमन्त्री बने और 1952 से 1956 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।1956 में हिमाचल को केंद्र शाषित प्रदेश बनाया गया जिसके बाद हिमाचल उप राज्यपाल के अधीन आ गया। डॉ. परमार 1963 में फिर से प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और फिर 1977 तक वह बतोर मुख्यमंत्री अपनी सेवाएं प्रदेश को देते रहे। प्रदेश में डॉ. परमार इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री रहे है जिन्हें एक से अधिक अवधि के लिए लगातार मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हो।


डॉ. परमार एक ऐसी शख्सियत थे जिनके बारे में बहुत कुछ लिखा, कहाँ और सुना गया। वह एक दूरदर्शी राजनेता के साथ साथ एक कुशल प्रशासक भी थे। मन, वचन, व् कर्मो से वह ठेठ पहाड़ी थे और पहाड़ी संस्कृति उनके रोम रोम में वास करती थी। डॉ. परमार ने पहाड़ी भेषभूषा को उस समय अपनाया था जब पहाड़ी लोगो का नगरो में जाने पर अक्सर मजाक उड़ाया जाता था और शोषण किया जाता था।देखने को मिलता है कि पहाड़ी लोग पहाड़ी पहनावे को लेकर केवल अपने गाँव घर तक सीमित है।लेकिन डॉ. परमार ने हमेशा से पहाड़ी भेषभूषा को बढ़ावा दिया और वह सदा लंबी कमीज, चूड़ीदार पजामा, और लोइया आदि पहाड़ी वस्त्रो को पहनते थे। 


क्या आप आज ये कल्पना कर सकते है कि कोई नेता बिना कोई पैसा खर्च किये चुनाव लड़े?ऐसा कहाँ जाता है कि  डॉ. परमार को जब 1967 में  चुनाव लड़ने के लिए पार्टी की तरफ से 4000 रु दिए गए तो उन्होंने लेने से इनकार कर दिया और वह 4000 रु अन्य उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार में खर्च करने को दे दिए। डॉ. परमार जब कभी भी प्रदेश में कही जाते तो वह सरकारी विश्राम गृह का इस्तेमाल नहीं करते थे और अपने सहयोगियों को भी नहीं करने देते थे। उनका मानना था कि जब भी मौका मिले उन्हें लोगो के बीच रहना चाहिए। और इसके इलावा वह न तो किसी उद्योगपति और न ही किसी कारोबारी के यहाँ ठहरते और अपने सहयोगियों से भी ऐसी ही अपेक्षा रखते थे।

डॉ.परमार हमेशा सड़को के निर्माण की पैरवी करते थे उनका मानना था कि सड़के किसी भी प्रदेश या क्षेत्र के लिए जीवन दायिनी है। कहते है कि वह जब भी ग्रामीण क्षेत्रो में भ्रमण के लिए निकलते तो अपने साथ टाइपराइटर और अधिकारिओ को साथ लेकर जाते थे ताकी ग्रामीणों की समस्याओ को दूर करने के लिए आदेश वही जारी कर सके। 
वह जब भी ग्रामीण क्षेत्रो में जाते तो लोग उनके साथ साथ एक गाँव से दूसरे गाँव यु ही चल देते थे।उनके स्वागत में ग्रामीण लोग जब लोकनृत्य करतेे, तो वे भी उसमें शामिल हो जाते थे। लोकपर्व, मेले व तीज-त्योहारों आदि में वे हमेशा अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते थे। ग्रामीण क्षेत्र में वे असकली, सिड़कु, पटण्डे, लुश्के जैसे स्थानीय पकवानों की माँग करते और ग्रामीणों के बीच में बैठकर पत्तल पर ही भोजन करते थे। 

डा. परमार अपनी बोलचाल में अक्सर पहाड़ी बोली का ही प्रयोग करते थे। उनका ये मानना था कि यदि अपनी बात सब तक पहुँचानी है, तो स्थानीय बोली से अच्छा कोई तरीका नहीं है। 
कहाँ जाता है कि 1977 में उनके इस्तीफे के पीछे का कारण संजय गांधी भी माने जाते है। ऐसा भी एक किस्सा है कि एक मर्तबा संजय गांधी कसौली आये हुए थे। वहाँ उन्होंने अपने जूते सही ढंग से नहीं रखे और उनके जूते खो गए।जिसके बाद उन्होंने काफी हंगामा किया जिसपर उस समय के मुख्यमंत्री डॉ. परमार ने उनके मुह पर ये कह दिया था कि उन्हें अपने जूते संभाल के रखने चाहिए थे।

डॉ.परमार के इस्तीफे को लेकर एक और किस्सा ये भी है कि जब उन्हें इस्तीफे से पूर्व दिल्ली ये बात करने के लिए बुलाया गया और जब वहाँ पहुँच कर डॉ. परमार को ये बात पता चली की उन्हें दिल्ली उनसे इस्तीफ़ा मांगने के लिए बुलाया गया है तो इसपर वह हँसकर बोले कि इतनी सी बात के लिए दिल्ली बुलाने की क्या जरुरत थी फ़ोन पर ही कह दिया होता।

अपना त्याग पत्र देने के बाद डॉ.परमार ने शिमला बसस्टैंड से शिमला से नाहन जाने वाली HRTC  बस पकड़ी और उसमे बैठकर अपने गाँव चले गए।सवारियो से भरी इस बस की सीट नंबर 2 पर बैठे एक बुजुर्ग शख्स ने अपना किराया खुद से कटवाया और जब कंडक्टर ने उन्हें देखा तो ये देख कर वह भी आवाक रह गया कि भला कैसे एक शख्स जिसे हिमाचल निर्माता के नाम से जाना जाता हो, जो लगभग 2 दशको तक प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा हो आज वह अपने पद से इस्तीफ़ा देने के बाद कैसे सादगी के साथ आम लोगो के बीच सफ़र कर रहा है।

डॉ.परमार के समय के कुछ इंजीनियर आज भी याद करते है कि कैसे डॉ. परमार देश के बड़े बड़े संस्थानों को पत्र लिखकर बेहतर इंजीनियरो को सरकारी नोकरी के लिए हिमाचल में भेजने के लिए कहते थे।

वे शख्स डॉ. परमार ही थे जिनके प्रयासों से हिमाचल को एक अलग प्रदेश का दर्जा मिला। और उन्ही के प्रयासों से प्रदेश में धारा 118 भी मिली जिसके चलते बाहरी राज्य के लोग हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकते।


सादगी व् परिश्रम की मूरत डॉ. परमार ने प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए विकासात्मक कार्य के लिए अन्य जिलो से भेदभाव तो दूर बल्कि अन्य जिलो को अपने गृह जिला सिरमौर से पहले तेहरीज दी।
ऐसे सरल, सौम्य, और मिलनसार व्यक्तित्व का 2 मई, 1981 को देहांत हो गया। और कहाँ जाता है कि जब उनका देहांत हुआ तो उनके खाते में उस समय मात्र 563 रूपए 30 पैसे थे।
ऐसे महान पुरुष को शत शत नमन है। राजनीती में ऐसे व्यक्तित्व की आज न सिर्फ प्रदेश में बल्कि देश में भी सख्त जरुरत है।

।।जय हिन्द।।

नोट :- यदि लेख में कोई गलती हो तो कृप्या कमेंट में जरूर लिखे ताकि हम उसे ठीक कर सके।

रविवार, 2 अगस्त 2020

सच्ची घटनाओ से प्रेरित होकर लिखी गई कहानियां - कहानी नं.- 02

नाते-रिश्ते का तो लिहाज करो


एक समय की बात है किसी गाँव में एक छोटा सा कार्य सरकार द्वारा मंजूर किया गया। गाँव वालो के लिए ये बहुत जरुरी कार्य था।इस कार्य की मंजूरी दिलवाने के लिए उन्होंने दफ्तरों के कई चक्कर काटे थे और इस से गाँव की रोजमर्रा की ज़िन्दगी जुडी थी। 


मंजूरी के बाद ये काम किसी स्थानीय ठेकेदार को सौंपा गया जिस से गाँव वालो के पारिवारिक सम्बन्ध थे। लोग इस बात से काफी खुश थे की अपने किसी सगे-संबंधी को काम मिला है और उन्हें अब कोई चिंता नहीं थी अपितु पूरा यकीन था कि अपने सगे संबंधी के पास ये काम है तो नाते रिश्ते का लिहाज करके वह इस कार्य को जल्द ही करवा देगा और पूरी गुणवत्ता के साथ ये कार्य पूर्ण होगा।


लेकिन काम शुरू होने का इंतज़ार करते करते साल बीत गया।गाँव के लोग जब भी काम के बारे में पूछते तो ठेकेदार जी जल्द काम शुरू करने का दिलासा दे कर बात को रफा दफा कर देते। 


1 वर्ष से भी अधिक समय बीत जाने के बाद और बार बार ठेकेदारो के आगे मिन्नते करने के बाद भी काम शुरू नहीं हुआ। गाँव के युवाओ से लेकर बुर्जुर्ग तक लगभग सभी ठेकेदार से मिन्नते कर चुके थे। और सम्बंधित विभाग के स्थानीय अधिकारी को भी कई बार सूचित कर चुके थे। लेकिन परिणाम हर बार वही झूठा दिलासा और नाते रिश्ते की दुहाई।


दिनों का इंतज़ार अब सालो में तब्दील हो चूका था। लगभग 2 साल का समय पूरा हो चूका था और गाँव वालो को अभी भी काम शुरू होने का इंतज़ार था। अब गाँव के कुछ नोजवानो का सब्र का बाँध टूट रहा था। उन्होंने निर्णय लिया की अब उच्च स्तर पर इस मामले को उठायेगे और जल्द इसमें कुछ कार्यवाही करने की मांग करेगे।लेकिन गाँव के युवा ऐसे काम अपने बुर्जुर्गों से पूछे बिना नहीं करते थे। इसलिए उन्होंने इस दिशा में आगे बढ़ने से पहले अपने बुजुर्गो को पूछना उचित समझा। जब उन्होंने गाँव के बुजुर्गो के समक्ष अपनी बात रखी तो युवाओ को ये कह के चुप करवा दिया गया कि ऐसे उलटे काम नहीं करने चाहिए "नाते रिश्ते का तो लिहाज करो"। और इस चुप्पी का परिणाम ये हुआ की गाँव वाले इंतज़ार करते रह गए और ठेकेदार जी रिश्तेदारी में मिली छूट का फायदा उठाकर बचते रहे।और ये काम कभी शुरू ही नहीं हुआ।


अब सवाल ये उठता है कि क्या नाते रिश्ते की डोर सिर्फ एक तरफ से पकड़ के चल सकती है?? चलेगी भी तो आखिर कब तक?? अपनों के लिए आये काम मतलब अपने काम फिर भी ऐसी हरकते?? अगर ठेकेदार जी को नाते रिश्ते का इतना ही लिहाज होता तो काम में देरी करने की वजाए और जल्दबाज़ी दिखाते और इस काम को प्राथमिकता देते। पर ऐसा नहीं हुआ। सच्चाई तो ये थी कि गाँव वाले रिश्तेदारी की उस डोर को  पकड़ के बेठे थे जिसे ठेकेदार जी अपने मतलब के लिए इस्तेमाल कर रहे थे।


नोट:- व्यक्तियत किसी से कोई बैर नहीं। हमारी आवाज केवल सार्वजनिक हितो के लिए है।


।।जय हिन्द।।



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