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मंगलवार, 11 अगस्त 2020
।।सावधान।।सरकारी योजनाओ के नाम पर हो रही है ठगी।।FRAUD ALERT।।
सोमवार, 10 अगस्त 2020
शार्प के सदस्यों ने XEN PWD चौपाल( Chopal) से की मुलाकात।
XEN साहब से हुई इस मुलाकात के दौरान क्षेत्र से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर बात हुई और उनमे से कुछ मुद्दों पर उन्होंने क्या कहाँ वह कुछ इस प्रकार है:-
1. कुपवी स्कूल भवन के जो 5 कमरे बनने थे परंतु नहीं बने। जिसमे की केवल 2 ही कमरे बन पाये थे। और काफी समय से इस काम में कोई कार्यवाही नहीं हो रही थी। इसपर कहा कि बाकि बचे कमरो को बनाने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी।
2. कुछ समय पूर्व जो एक ठेकेदार L&T सड़क में चला कर ले गए थे जिस वजह से सड़क को काफी नुकसान हुआ था। इस पर भी उन्होंने JE PWD कुपवी को डैमेज रिपोर्ट तैयार करने को कह दिया है। उसके बाद जो भी उचित कार्यवाही बनेगी वो की जायेगी।
3. CHC भवन के निर्माण कार्य में तेजी लाइ जायेगी और गुणवता का पूरा ध्यान रख के कार्य किया जाएगा। और जिस ड़ंगे पर शार्प ने ऑब्जेक्शन किया गया था उसे गिराया जायेगा ,ऐसा आश्वासन SDO कुपवी ने दिया था। जिसमे की विभाग अब आनाकानी कर रहा था हालाँकि विभाग के अधिकारिओ के पूर्व में दिए बयान हमारे पास मौजूद है। इस पर आज XEN साहब से पुनः मौके पर मिलेगे।
4. कांडा-बनाह सड़क पर जो सड़क की गलत कटाई करके सड़क को असुरक्षित किया गया है। जिसपर काफी समय से हम आवाज उठा रहे है। पर कोई संतोषजनक कार्यवाही नहीं हुई। और इस स्पॉट पर गत 11 जुलाई को जब SDO PWD मौके पर आये थे तो उन्होंने भी उस समय गलत कटाई को कबूल किया था और कहाँ था की इसमें कम से कम 25-30 लाख का खर्चा पड जाएगा। ठेकेदार द्वारा की गई इतनी बड़ी गलती के बावजूद भी ठेकेदार पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती। आखिर क्यों??हालाँकि इसमें भी विभाग काफी समय से आनाकानी कर रहा था लेकिन अब वहाँ ड़ंगे देने का आश्वासन XEN साहब ने दिया है।
5. बौरा गाँव की वर्षा- शालिका का कार्य 1 हफ्ते के अंदर शुरू किया जाएगा।
6. इसके इलावा PWD रेस्ट हाउस, जोकि सरकारी संपत्ति है उसका दुरूपयोग बंद किया जाये। और जो यहाँ एक-डेढ़ वर्ष से नायब तहसीलदार साहब को ठहरा रखा है। उन्हें भी जल्द कमरा लेने को कहाँ जाये। और PWD रेस्ट हाउस का जो दूसरे तरह से भी दुरूपयोग किया जाता है उसे भी बन्द करने के बारे में बात की गई।
इसके इलावा एक बात स्पष्ट की गई है कि हम लोगो ने अब मिन्नते बहुत कर ली है। पिछले 3 साल से हम मिन्नते कर रहे है की क्षेत्र में विकास कार्य समय पर और गुणवत्ता के साथ किये जाये। लेकिन हमारी ये भाषा अभी समझ नहीं आ रही है। और बार बार हमारी बातो को नजरअंदाज किया जा रहा है। अगर ऐसा ही रवैया रहा तो फिर हमे भी रास्ते और तरीके बदलने पड़ेंगे जोकि फिर काफी तकलीफदायीं हो सकते है।
हालाँकि ये केवल मौखिक आश्वासन है।हमारी कोशिश रहेगी कि ये सब जल्द लिखित में विभाग से लिया जाये।
इसके इलावा आज हम XEN साहब के साथ कुछ स्पॉट का दौरा भी करेगे।
#KUPVI #कुपवी
।।जागो।। संगठित हो जाओ।।
।।जय हिन्द।।
मंगलवार, 4 अगस्त 2020
।।डॉ. यशवंत सिंह परमार।। सरल , सादगी और परिश्रम की ऐसी मूरत जो CM पद से इस्तीफ़ा देने के बाद HRTC की बस में बैठ कर अपने गाँव चल दिए थे।
डॉ. परमार एक ऐसी शख्सियत थे जिनके बारे में बहुत कुछ लिखा, कहाँ और सुना गया। वह एक दूरदर्शी राजनेता के साथ साथ एक कुशल प्रशासक भी थे। मन, वचन, व् कर्मो से वह ठेठ पहाड़ी थे और पहाड़ी संस्कृति उनके रोम रोम में वास करती थी। डॉ. परमार ने पहाड़ी भेषभूषा को उस समय अपनाया था जब पहाड़ी लोगो का नगरो में जाने पर अक्सर मजाक उड़ाया जाता था और शोषण किया जाता था।देखने को मिलता है कि पहाड़ी लोग पहाड़ी पहनावे को लेकर केवल अपने गाँव घर तक सीमित है।लेकिन डॉ. परमार ने हमेशा से पहाड़ी भेषभूषा को बढ़ावा दिया और वह सदा लंबी कमीज, चूड़ीदार पजामा, और लोइया आदि पहाड़ी वस्त्रो को पहनते थे।
डॉ.परमार के इस्तीफे को लेकर एक और किस्सा ये भी है कि जब उन्हें इस्तीफे से पूर्व दिल्ली ये बात करने के लिए बुलाया गया और जब वहाँ पहुँच कर डॉ. परमार को ये बात पता चली की उन्हें दिल्ली उनसे इस्तीफ़ा मांगने के लिए बुलाया गया है तो इसपर वह हँसकर बोले कि इतनी सी बात के लिए दिल्ली बुलाने की क्या जरुरत थी फ़ोन पर ही कह दिया होता।
अपना त्याग पत्र देने के बाद डॉ.परमार ने शिमला बसस्टैंड से शिमला से नाहन जाने वाली HRTC बस पकड़ी और उसमे बैठकर अपने गाँव चले गए।सवारियो से भरी इस बस की सीट नंबर 2 पर बैठे एक बुजुर्ग शख्स ने अपना किराया खुद से कटवाया और जब कंडक्टर ने उन्हें देखा तो ये देख कर वह भी आवाक रह गया कि भला कैसे एक शख्स जिसे हिमाचल निर्माता के नाम से जाना जाता हो, जो लगभग 2 दशको तक प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा हो आज वह अपने पद से इस्तीफ़ा देने के बाद कैसे सादगी के साथ आम लोगो के बीच सफ़र कर रहा है।
डॉ.परमार के समय के कुछ इंजीनियर आज भी याद करते है कि कैसे डॉ. परमार देश के बड़े बड़े संस्थानों को पत्र लिखकर बेहतर इंजीनियरो को सरकारी नोकरी के लिए हिमाचल में भेजने के लिए कहते थे।
वे शख्स डॉ. परमार ही थे जिनके प्रयासों से हिमाचल को एक अलग प्रदेश का दर्जा मिला। और उन्ही के प्रयासों से प्रदेश में धारा 118 भी मिली जिसके चलते बाहरी राज्य के लोग हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकते।
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रविवार, 2 अगस्त 2020
सच्ची घटनाओ से प्रेरित होकर लिखी गई कहानियां - कहानी नं.- 02
एक समय की बात है किसी गाँव में एक छोटा सा कार्य सरकार द्वारा मंजूर किया गया। गाँव वालो के लिए ये बहुत जरुरी कार्य था।इस कार्य की मंजूरी दिलवाने के लिए उन्होंने दफ्तरों के कई चक्कर काटे थे और इस से गाँव की रोजमर्रा की ज़िन्दगी जुडी थी।
मंजूरी के बाद ये काम किसी स्थानीय ठेकेदार को सौंपा गया जिस से गाँव वालो के पारिवारिक सम्बन्ध थे। लोग इस बात से काफी खुश थे की अपने किसी सगे-संबंधी को काम मिला है और उन्हें अब कोई चिंता नहीं थी अपितु पूरा यकीन था कि अपने सगे संबंधी के पास ये काम है तो नाते रिश्ते का लिहाज करके वह इस कार्य को जल्द ही करवा देगा और पूरी गुणवत्ता के साथ ये कार्य पूर्ण होगा।
लेकिन काम शुरू होने का इंतज़ार करते करते साल बीत गया।गाँव के लोग जब भी काम के बारे में पूछते तो ठेकेदार जी जल्द काम शुरू करने का दिलासा दे कर बात को रफा दफा कर देते।
1 वर्ष से भी अधिक समय बीत जाने के बाद और बार बार ठेकेदारो के आगे मिन्नते करने के बाद भी काम शुरू नहीं हुआ। गाँव के युवाओ से लेकर बुर्जुर्ग तक लगभग सभी ठेकेदार से मिन्नते कर चुके थे। और सम्बंधित विभाग के स्थानीय अधिकारी को भी कई बार सूचित कर चुके थे। लेकिन परिणाम हर बार वही झूठा दिलासा और नाते रिश्ते की दुहाई।
दिनों का इंतज़ार अब सालो में तब्दील हो चूका था। लगभग 2 साल का समय पूरा हो चूका था और गाँव वालो को अभी भी काम शुरू होने का इंतज़ार था। अब गाँव के कुछ नोजवानो का सब्र का बाँध टूट रहा था। उन्होंने निर्णय लिया की अब उच्च स्तर पर इस मामले को उठायेगे और जल्द इसमें कुछ कार्यवाही करने की मांग करेगे।लेकिन गाँव के युवा ऐसे काम अपने बुर्जुर्गों से पूछे बिना नहीं करते थे। इसलिए उन्होंने इस दिशा में आगे बढ़ने से पहले अपने बुजुर्गो को पूछना उचित समझा। जब उन्होंने गाँव के बुजुर्गो के समक्ष अपनी बात रखी तो युवाओ को ये कह के चुप करवा दिया गया कि ऐसे उलटे काम नहीं करने चाहिए "नाते रिश्ते का तो लिहाज करो"। और इस चुप्पी का परिणाम ये हुआ की गाँव वाले इंतज़ार करते रह गए और ठेकेदार जी रिश्तेदारी में मिली छूट का फायदा उठाकर बचते रहे।और ये काम कभी शुरू ही नहीं हुआ।
अब सवाल ये उठता है कि क्या नाते रिश्ते की डोर सिर्फ एक तरफ से पकड़ के चल सकती है?? चलेगी भी तो आखिर कब तक?? अपनों के लिए आये काम मतलब अपने काम फिर भी ऐसी हरकते?? अगर ठेकेदार जी को नाते रिश्ते का इतना ही लिहाज होता तो काम में देरी करने की वजाए और जल्दबाज़ी दिखाते और इस काम को प्राथमिकता देते। पर ऐसा नहीं हुआ। सच्चाई तो ये थी कि गाँव वाले रिश्तेदारी की उस डोर को पकड़ के बेठे थे जिसे ठेकेदार जी अपने मतलब के लिए इस्तेमाल कर रहे थे।
नोट:- व्यक्तियत किसी से कोई बैर नहीं। हमारी आवाज केवल सार्वजनिक हितो के लिए है।
।।जय हिन्द।।
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